अकबर बीरबल स्टोरी (जैसा सवाल वैसा जवाब) | akbar birbal story in hindi

बादशाह अकबर अपने मंत्री बीरबल को बहुत पसंद करता था| बीरबल की बुद्धि के आगे बड़े बड़ों की भी कुछ नहीं चल पाती थी| इसी कारण कुछ दरबारी बीरबल से जलते थे| वह बीरबल को मुसीबत में फसाने के तरीके सोचते रहते थे|

अकबर के एक खास दरबारी ख्वाजा शरा को अपनी विद्या और बुद्धि पर बहुत अभिमान था| बीरबल को तो वह अपने सामने नीरा बालक और मूर्ख समझते थे| लेकिन अपने ही मानने से तो कुछ होता नहीं! दरबार में बीरबल की ही तू तू बोलती और ख्वाजा साहब की बात ऐसी लगती थी जैसे नक्कारखाने में तूती की आवाज|

ख्वाजा साहब की चलती तो वह बीरबल को हिंदुस्तान से निकलवा देते लेकिन निकलवा थे कैसे!

1 दिन ख्वाजा ने बीरबल को मूर्ख साबित करने के लिए बहुत सोच विचार कर कुछ मुश्किल प्रश्न सोच लिए| उन्हें विश्वास है कि बादशाह के उन प्रश्नों को सुनकर बीरबल के छक्के छूट जाएंगे और वह लाख कोशिश करके भी संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाएगा| फिर बादशाह मान लेगा कि ख्वाजा सरा के आगे बीरबल कुछ नहीं है|

ख्वाजा साहब अचकन – पगड़ी पहन कर गाड़ी चलाते हुए अकबर के पास पहुंचे और सिर झुका कर बोले,” बीरबल बड़ा बुद्धिमान बनता है| आप अभी उसकी लंबी चौड़ी बातों के धोखे में आ जाते हैं| मैं चाहता हूं कि आप मेरे तीन सवालों के जवाब पूछ कर उसके दिमाग की गहराई नाप ले| कुछ नकली अक्ल बहादुर की कलई खुल जाएगी|

ख्वाजा के अनुरोध करने पर अकबर ने बीरबल को बुलाया और उनसे कहा,” बीरबल! परम ज्ञानी ख्वाजा साहब तुमसे 3 प्रश्न पूछना चाहते हैं क्या तुम उत्तर दे सकोगे?

बीरबल बोले,” जहांपनाह! जरूर दूंगा| खुशी से पूछे”|

ख्वाजा साहब ने अपने तीनों सवाल लिखकर बादशाह को दे दिए|

अकबर ने बीरबल से ख्वाजा का पहला प्रश्न पूछा,” संसार का केंद्र कहां है?”

बीरबल ने तुरंत जमीन पर अपने चढ़े गाड़ कर उत्तर दिया,” यही स्थान चारों ओर से दुनिया के बीचो-बीच पड़ता है| यदि ख्वाजा साहब को विश्वास ना हो तो वे मजदूरों से सारी दुनिया को नाप कर दिखा दे कि मेरी बात गलत है|”

अकबर ने दूसरा प्रश्न किया,” आकाश में कितने तारे हैं?”

बीरबल ने एक बेड मंगवा कर कहा,” इस पेड़ के शरीर में जितने बाल है, उतने ही तारे आसमान में है| ख्वाजा साहब को इसमें संदेह हो तो वे बालों को गिन कर तारों की संख्या से तुलना कर ले|”

अब अकबर ने तीसरा सवाल किया,” संसार की आबादी कितनी है?”

बीरबल ने कहा,” जहांपनाह! संसार की आबादी पल-पल पर घटती– बढ़ती रहती है क्योंकि हर पल लोगों का मरना जीना लगा रहता है| इसलिए यदि सभी लोगों को एक जगह इकट्ठा कर लिया जाए तभी उसको गिन कर ठीक ठीक संख्या बताई जा सकती है|”

बादशाह तो बीरबल के उत्तरों से संतुष्ट हो गया लेकिन ख्वाजा साहब नाक को सीकोडकर बोले,” ऐसे गोल-गोल जवाबों से काम नहीं चलेगा जनाब!”

बीरबल बोले,” ऐसे सवालों के ऐसे ही जवाब होते हैं| पहले मेरे जवाबों को गलत साबित कीजिए तब आगे बढिए |”

इसके बाद तो ख्वाजा साहब से कुछ बोला ही नहीं गया और वह दरबार छोड़कर बाहर ही चले गए|

दोस्त की पोशाक (Dosto ki kahaniya)

एक बार नसरुद्दीन अपने बहुत पुराने दोस्त जमाल साहब से मिलने गए| अपने पुराने दोस्त से मिलकर भी बड़े खुश हो गए| कुछ देर गपशप के बाद नसरुद्दीन ने कहा,” चलो दोस्त, मोहल्ले में घूम आए|”

जमाल साहब ने जाने से मना कर दिया और कहा,” अपनी इस मामूली सी पोशाक में मैं लोगों से नहीं मिल सकता|”

नसरुद्दीन ने कहा,” बस इतनी सी बात!”

नसरुद्दीन तुरंत चमार साहब के लिए अपने एक लड़की ली अचकन निकाल कर लाए और कहा,” इसे पहन लो| इसमें तुम खूब अच्छे लगोगे| सब देखते रह जाएंगे|”

बन ठन कर दोनों घूमने निकल गए| घूमते घूमते नसरुद्दीन अपने दोस्त को लेकर पड़ोसी के घर पहुंच गया| नसरुद्दीन ने पड़ोसी से कहा,” यह मेरा खास दोस्त है, जमाल साहब| आज कई सालों बाद जमाल से मुलाकात हुई है| वैसे जो अचकन इन्होंने पहन रखी है, वह मेरी है|”

यह सुनकर जमाल साहब पर तो मानो बिजली ही गिर गई| बाहर निकलते ही जमाल ने नसरुद्दीन से कहा,” तुम्हारी कैसी अक्ल है! क्या यह बताना जरूरी था कि यह चिकन तुम्हारी है? तुम्हारा पड़ोसी सोच रहा होगा कि मेरे पास अपने कपड़े ही नहीं है|”

नसरुद्दीन ने माफी मांगते हुए कहा,” गलती हो गई जमाल| मैं करूंगा|”

अब नसरुद्दीन जमाल को हुसैन साहब से मिलवाने ले गया| हुसैन साहब ने बड़े अच्छे तरीके से उनका स्वागत सत्कार किया| जब जमाल साहब के बारे में पूछा तो नसरुद्दीन ने कहा,” जमाल साहब मेरे पुराने दोस्त है और इन्होंने जो अचकन पहनी है वह इनकी अपनी ही है|”

जमाल साहब फिर नाराज हो गए| बाहर आकर बोले,” झूठ बोलने को किसने कहा था तुमसे?”

नसरुद्दीन ने कहा,” क्यों? तुमने जैसा चाहा, मैंने वैसे ही तो कहा|”

जमाल ने कहा कि,” पोशाक की बात कहे बिना काम नहीं चलता क्या? पोशाक के बारे में ना कहना ही अच्छा है|”

जमाल साहब को लेकर नसरुद्दीन आगे बढ़े तभी एक अन्य पड़ोसी मिल गया| नसरुद्दीन ने जमाल साहब का परिचय उनसे करवाया,” मैं आपको अपने पुराने दोस्त से मिल जाता हूं जिसका नाम जमाल है और जमाल ने जो अचकन पहनी है उसके बारे में मैं चुप ही रहो तो अच्छा है|”

इस तरह मूर्ख लोगों को समझाना बेकार है| क्योंकि वह सिर्फ अपनी ही बात स|मझ सुन सकते हैं और किसी की बात इन लोगों के पल्ले नहीं पड़ती

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