भीष्म पितामह की सलाह और एक कहानी | Bhisham pitamah ki kahani

Bhisham pitamah ki kahani – हमारे जीवन में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जहां हम झुकना नहीं चाहते बस पकड़कर खड़े रहना चाहते हैं कि दूसरे लोग भी हमारी तरफ आए हम किसी को ना बुलाए|

भीष्म पितामह की सलाह और एक कहानी  Bhisham pitamah ki kahani

इस तरह की अकड़ रखने से हमारा ही नुकसान होता है| यह बात हम इस कहानी द्वारा समझेंगे| कि झुकने से क्या फायदा होता है और अकड़ कर रहने से हमारा क्या नुकसान हो सकता है| चलिए शुरू करते हैं कहानी,

एक बार युधिष्ठिर भीष्मा पितामह से मिलने आ गए| युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह को कोई संदेशा भेजने के लिए कहां| भीष्मा पितामह ने कहा कि ,”मैं तुम्हारा संदेशा भेज दूंगा, मगर उसके पहले जो मैं एक कहानी बता रहा हूं वह तुम जिंदगी भर याद रखना और उसी के रास्ते चलना”|

भीष्मा पितामह कहानी करना चालू करते हैं (Bhisham pitamah ki kahani)

वेत्रवती नदी सागर से मिलने गई तब सागर ने वेत्रवती नदी पर गुस्सा करके कहा,” सभी नदियां जो मुझे मिलने आती है तो मेरे लिए कुछ ना कुछ सौगात लाती है| कोई नदियां रास्ते से बड़े पेड़ को लाती है तो कोई नदी बड़े पत्थर भी लाती है|

सभी नदियां अपने प्रदेश से कुछ ना कुछ भेंट सौगात लाती है मगर तुम ऐसी ही चली आती हो| मेरे लिए कुछ भी सौगात लाती नहीं हो|

वेत्रवती नदी ने दुखी होकर कहा,” स्वामी, मैं क्या करूं किस प्रदेश से में निकलती हूं वहां पर सिर्फ घ्रो (एक घास का प्रकार) होती है| सागर ने तो बीच से ही नदी को कहना अटका कर बोला,” तो तुम मेरे लिए घ्रो (एक घास का प्रकार) लाया करो|

वेत्रवती नदी ने दुखी होकर कहा,” प्रभु, मैं बहुत ही प्रयत्न करती हूं कि घ्रो (एक घास का प्रकार) को उखाड़ कर आपके लिए लाऊं| पर घ्रो (एक घास का प्रकार) आती ही नहीं है मैं क्या करूं|

समुद्र को बहुत ही आश्चर्य होता है और आश्चर्य के साथ पूछता है,” ऐसा कैसे हो सकता है, तुम उससे घसीट कर अपने साथ लाओ तो वह आ जाएगा”|

वेत्रवती नदी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि,” देव, मैं जब ज्यादा बाहर से चलती हूं और आप को मिलने के लिए दौड़ती हूं, सब पागल होकर में अपना भाव बढ़ा देती हूं, तब मार्ग में आने वाली सभी घ्रो नीचे झुक जाती है| घ्रो के नीचे झुक जाने से मेरे बहाव के साथ आती नहीं है और वहीं पर टिकी रहती है|

जब मेरा बाहर शांत हो जाता है तब वह फिर से खड़ी हो जाती है||”

समुद्र ने कहा” तब तो घ्रो हो कोई भी अपने स्थान से नहीं मिला सकता”| यह कह कर समुद्र ने वेत्रवती नदी को अपने में समा लिया|

जो मनुष्य कोई भी परिस्थिति को समझकर झुक जाता है छोटा बन जाता है और कठिन परिस्थितियों का सामना चुप कर करता है वह हमेशा ही आगे बढ़ता रहता है|

जो मनुष्य पकड़ कर खड़ा रहता है वह वह जाता है|

कहने का मतलब यह है कि हमें ऐसी परिस्थिति हो उसके हिसाब से रहना चाहिए| यह नहीं कि बस हम रुके ही नहीं सिर्फ लोग ही हमारे सामने झुकते रहे यह हमारी बेवकूफी होगी|

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नकल करके आगे बढ़ने में बहुत ही समझदारी दिखाते हैं मगर ऐसा नहीं होता| हम यह क्यों भूल जाते हैं कि दूसरे लोग हमसे भी समझदार हो सकते हैं और हम से भी आगे बढ़ सकते हैं|

जो लोग सिर्फ दिखावे में ही रहते हैं वह कहीं ना कहीं अपने कोई नीचा दिखाते हैं और परिस्थितियों के सामने लड़ भी नहीं सकते|

आज मैं आपको ऐसे ही कहानी बता रही हूं तो चलिए शुरू करते हैं कहानी,

1 दिन सामा के समय महान अभिनेता चार्ली चैपलिन बाजार में घूमने निकलते हैं| चार्ली चैपलिन ने एक खबर पढ़ी| खबर में यह था कि अभिनय के साथ वेशभूषा भी रखी गई थी उस पर कॉन्पिटिशन में चार्ली चैपलिन की नकल करनी थी|

जीतने वाले को बड़ा इनाम मिलने वाला था| चार्ली चैपलिन को जब पता चला कि खुद के ही पात्र की कॉन्पिटिशन है तो उसके मन में मजाक करने की सूची|

पोशाक परिवर्तन करके जहां कंपटीशन होने वाली थी

वहां पहुंच गया और कंपटीशन में भाग लेने के लिए फॉर्म भी भर दिया|

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