Moral Stories – एक दिन की बादशाहत

आज हम आपके साथ एक ऐसी मोरल कहानी लेकर आए हैं जिसका नाम है “एक दिन की बादशाहत “ इस कहानी को लिखा है जीलानी बानो ने और इस कहानी को उर्दू भाषा से हिंदी में अनुवाद किया है लक्ष्मी चंद गुप्त ने

आरिफ सलीम , चलो सो जाओ मम्मी की आवाज उसे वक्त पर आती थी जब वह दोस्तों के साथ बैठे कव्वाली गा रहे थे या फिर सुबह बड़े मजे से आइसक्रीम खाने के सपने देख रहे हैं थे कि आप की छोड़कर जगा देती है जल्दी उठो स्कूल का वक्त हो गया है.

दोनों की मुसीबत में जान थी हर वक्त पाबंदी हर वक्त सरकार थी अपनी मर्जी से क्यों भी नहीं कर सकते थे कभी आरिफ को गाने का मूड होता तो भाई जान डांटे चुप होता है या फिर नहीं हर वक्त मेंढक की तरह टर्राए रखते थे।

बाहर जाओ तो अम्मी पूछती थी बाहर क्यों गए अंदर रहते तो दादी चिल्लाती थी है मेरा दिमाग फटा जा रहा है शोर के मारे अरे रजिया जरा इन बच्चों को बाहर हाथ दे जैसे बच्चे ना हुए मुर्गी के चूजे हो गए।

दोनों घंटे बैठकर इन पाबंदियों से बच निकलने की तरकीब सोच रहे थे उन दोनों से तो सारे घर को दुश्मनी जैसी हो गई थी इसलिए दोनों ने मिलकर एक योजना बनाई और अब्बा की खिदमत में एक दरखास्त पेश की की एक दिन उन्हें बड़ों के सारे अधिकार दे दिए जाएं और सब बड़े छोटे बन जाए।

कोई जरूरत नहीं है उधम मचाने की अम्मी ने अपनी आदत अनुसार डांटना शुरू किया लेकिन अब्बा जान किस मोड़ में थे कि न सिर्फ मान गए बल्कि यह इकरार भी कर बैठे कि कल दोनों को हर किस्म के अधिकार मिल जाएंगे अभी सुबह होने में कई घंटे बाकी थे कि आरिफ ने मम्मी को झिंझोर डाला और बोला जल्दी उठिए नाश्ता तैयार कीजिए।

1 दिन की बादशाहत की कहानी a short story

Moral Stories – एक दिन की बादशाहत

मम्मी ने चाहा कि एक झापड़ लगा दें और सोए रहे हैं मगर याद आया कि आज तो उनके सारे अधिकार छीने जा चुके हैं फिर दादी ने सुबह की नमाज पढ़ने के बाद दबाए खान और बादाम का हरिया पीना शुरू किया तो आरिफ़ ने उन्हें रोका तौबा है दादी कितना खरीद पीएनजी आप पेट फट जाएगा और दादी ने हाथ उठाया करने के लिए नाश्ता मैच पर आया तो आरिफ़ ने खानसामा से कहा अंडा और मक्खन वगैरा हमारे सामने रखो दलिया और दूध बिस्किट इन सबको दे दो।

अपने कर भरी नजरों से हमें देखा मगर बेबस और लाचार थी क्योंकि रोज की तरह आज वह अपने हिसाब से नहीं रह सकती थी सब खाने बैठे तो सलीम ने अम्मी को टोका और बोला एमी जरा अपने दांत देखिए पान खाने से कितने गंदे हो रहे हैं।

मैं तो दांत मांज चुकी हूं अम्मी ने बात को टालना चाहा।

मगर सलीम ने जबरदस्ती कंधा पड़कर उन्हें उठा दिया और बोला नहीं चलिए उठिए।

अब्बा का हंसते-हंसते बुरा हाल हो गया

अम्मी को गुसलखाने में जाते देखकर सब हंस पड़े जैसे रोज सलीम को जबरदस्ती भागकर हंसते थे।

फिर वह अब्बा की तरफ मुड़ा और बोला जरा अब्बा की गत देखिए बाल बड़े हुए हैं से नहीं की है कल कपड़े पहने थे और आज इतने मिले कर डाले आखिर अब्बा के लिए कितने कपड़े बनाए जाएंगे यह सुनकर अब्बा का हंसते-हंसते बुरा हाल हो गया आज यह दोनों कैसी सही नकल उतार रहे हैं सबकी मगर फिर अपने कपड़े देखकर वह सचमुच शर्मिंदा हो गए।

थोड़ी देर बाद जब अब्बा अपने दोस्तों के बीच बैठे अपनी नई गजल लड़क लड़क कर सुन रहे थे तो आरिफ फिर चिल्लाने लगा बस करिए अब्बा फॉरेन ऑफिस चाहिए 10:00 बज गए हैं।

अब्बा डांटे डांटे रुक गए , और बेबसी से गजल की अधूरी पंक्तियां दातों में दबे पांव पटकते आरिफ के साथ हो लिए।

अब्बा दफ्तर जाने को तैयार होकर बोले रजिया जरा मुझे ₹5 तो देना।

स्वामी विवेकानंद की कहानी

शेख बज मक्खी की कहानी

आरिफ ने तुनक कर अब्बा जान की नकल उतारी ₹5 का क्या होगा कर में पेट्रोल तो है जैसे अब्बा कहते हैं कि इतनी का क्या करोगे जेब खर्चे तो ले चुके हो।

आज गुलाब जामुन , गाजर का हलवा और मीठे चावल पकाओ ।

थोड़ी देर बाद खानसामा आया और बोला बेगम साहब आज क्या पकेगा।

अम्मी ने अपनी आदत के अनुसार कहना शुरू किया – आलू, गोष्ट, कबाब, मिर्ची का सालन। सलीम ने अम्मी की नकल उतारी और बोला नहीं आज यह चीज नहीं पकेंगे । आज गुलाब जामुन , गाजर का हलवा और मीठे चावल पकाओ ।

अम्मी सब्र ना कर सके और बोली- लेकिन मिठाइयां से रोटी कैसे खाई जाएगी?

जैसे हम रोज मिशन के सालन से कहते हैं दोनों ने एक साथ कहा दूसरी तरफ दादी किसी से तू तू मैं मैं किया जा रही थी।

आरिफ ने दादी की तरफ दोनों हाथों में सिर थाम कर कहा- ओ हो , दादी तो शोर के मारे दिमाग पिघलाई दे रही है। इतना सुनते ही दादी ने सीखना चिल्लाना शुरू कर दिया कि आज यह लड़की मेरे पीछे झार के पड़ गए हैं।

मगर अब्बा के समझाने पर खून का घूंट पीकर रह गई।

कॉलेज का वक्त हो गया था तो भाई जान अपनी सफेद कमीज को आरिफ सलीम से बचते दलान में लेकर आए और बोले “अम्मी शाम को मैं देर से आऊंगा दोस्तों के साथ फिल्म देखने जाना है”

आरिफ ने आंखें निकाल कर उन्हें धमकाया खबरदार कोई जरूरत नहीं फिल्म देखने की इम्तिहान करीब है और हर वक्त कर सपाटू में गुम रहते हो आप लोग।

पहले तो भाई जान एक करारा हाथ मारने लव के फिर कुछ सोच कर मुस्कुराहट पड़े और बोले – “लेकिन हुजूर अली दोस्तों के साथ खाकर फिल्म देखने की बात पक्की कर चुके हैं इसलिए इजाजत देने की मेहरबानी की जाए उन्होंने हाथ जोड़कर कहा”

बस मैं एक बार कह दिया तो कह दिया उसने लापरवाही से कहा और सोफे पर दराज होकर अखबार देखने लगा।

इतनी भारी साड़ी क्यों पहनी हो आप शाम तक गंदी हो जाएगी

इस वक्त आप भी अपने कमरे से निकली एक निहायत भारी साड़ी में लचक्ति लटकते बड़े थाट से कॉलेज जा रही थी और सलीम ने बड़े गौर से आपा का मुआयना किया “इतनी भारी साड़ी क्यों पहनी हो आप शाम तक गंदी हो जाएगी इस साड़ी को बदलकर जाइए आज वह सफेद वायल की साड़ी पहनना”

आपा चिढ़ गई और बोली -अच्छा-अच्छा बहुत दे चुके हुकुम।

हमारे कॉलेज में आज कार्यक्रम है उन्होंने साड़ी पहनने के लिए कहा है।

मैंने कहा – हुआ करें … मैं क्या कह रहा हूं … सुना नहीं ?

अपनी इतनी अच्छी नकल देखकर आपा शर्मिंदा हो गई बिल्कुल इसी तरह तो वह आरिफ और सलीम से उनकी मनपसंद कमीज उतरवा कर निहायत बेकार कपड़े पहनने का हम लगाए करती थी।

दूसरी सुबह हो गई।

स्कूल जाते वक्त एक चवन्नी जेब में डाल लिया करो क्या हर्ज है

सलीम की आंख खुली तो देखा , आपा नाश्ते की मेज सजा कर, उन दोनों के उठने का इंतजार कर रही थी। अम्मी खानसामा को हुक्म दे रही थी कि हर खाने के साथ एक मीठी चीज जरूर पकाया करो । अंदर आरिफ के गाने के साथ भाई जान मेज का तबला बजा रहे थे और अब्बा सलीम से कह रहे थे “स्कूल जाते वक्त एक चवन्नी जेब में डाल लिया करो क्या हर्ज है”।।।

निष्कर्ष – Moral Stories – एक दिन की बादशाहत

यह कहानी जीलानी बानो के द्वारा लिखी गई है और इसे उर्दू से हिंदी में अनुवाद किया है लक्ष्मीचंद्र गुप्त ने

आपको यह कहानी कैसी लगी नीचे कमेंट में जरूर हमें अपनी राय दें और इस तरह की कहानी के लिए रोजाना हमारे वेबसाइट पर आए आप इस कहानी को अपने मित्रों के साथ शेयर भी करें।

2 thoughts on “Moral Stories – एक दिन की बादशाहत”

Leave a Comment