श्रद्धा और धीरज(Hindi short story)

आज हम जानेंगे एक Motivational Hindi short story के बारे में जो हमारे जीवन में बहुत मायने रखती है|

हमारे जीवन में कई सारी घटनाएं बनती रहती है, और यह घटनाएं हमारे जीवन में क्या महत्व रखती है वह सोने के बदले हम यह सोचते रहते हैं कि वह जो घटना हमारे जीवन में बनी है उसका हमारे जीवन में नुकसान क्या हुआ है हालांकि फायदा भी ज्यादा होता है पर हम फायदा नहीं देखे बस होने वाली घटना का नुकसान ही हमें दिखता है\

आज की यह कहानी भी इसी पर लिखी गई है| हमें सिर्फ वही नहीं देखना चाहिए जो सामने दिख रहा है उसे पर भी नजर रखनी चाहिए की घटना के पीछे का मकसद क्या है?

चलिए शुरू करते हैं कहानी जो की मां और बेटे की घटना पर निर्मित है|

Motivational story in hindi

एक छोटा सा गांव था |उसे गांव में कई सारे अमीर और गरीब सभी लोग रहते थे| इसी गांव में सावित्री नाम की एक औरत रहती थी जिसका पति उसको छोड़कर चला गया था| कई साल बीतने के बाद भी सावित्री का पति घर नहीं आया| सावित्री अकेले ही अपने बच्चों को संभाल रही थी और काम भी कर रही थी|

एक दिन की घटना बनती है, जब सावित्री अपने बच्चे को लेकर तालाब के पास गई थी| सावित्री दूर बैठी थी तभी तालाब के किनारे पर उसका बच्चा खेल रहा था| सावित्री का ध्यान अपने बच्चे पर ही था| अचानक ही एक बड़ा मगरमच्छ तालाब के किनारे आया और बच्चे के पैर को दबोच लिया, बालक अपनी मस्ती में ही खेल रहा था उसको कुछ पता ही नहीं था|

दूर बैठी हुई मां यह घटना देख रही थी| सावित्री ने जब यह नजारा देखा तो सावित्री के तो होश ही उड़ गए| वह अपने बच्चे को कैसे भी मगर से छुड़ाना चाहती थी इसलिए दौड़कर अपने बच्चे का हाथ पकड़ लेती है और खींचती है बहुत ही मुश्किल के बाद वह अपने बच्चों के हाथ और पैर को मगरमच्छ से छुड़ा लेती है|

सावित्री अपने बच्चे को मगरमच्छ से बचा तो लेती है मगर बच्चे के हाथ में सावित्री के नाखून से खरोच आ जाती है और इस खरोच के कारण बच्चों के हाथ में खून निकलने लगता है| यहां छोटे से बच्चे को यह समझ में नहीं आ रहा है कि उसकी मां ने उसको इतना लहू लुहान कैसे किया| बच्चा सोचता है कि मेरी मां मुझे इतना दर्द कैसे दे सकती है| इतनी चोट पहुंचाने के बारे में मेरी मां ने जरा भी नहीं सोचा होगा?

सावित्री अपने बच्चों की आंखों में यह सारे प्रश्न पढ़ रही है, तभी वह अपने बेटे को बताती है” मुझे पता है कि तुम मुझ पर गुस्सा हो| क्योंकि मेरा नाखून तुम्हें लग गया और तुम्हें चोट भी आ गई है| तुम्हें बहुत पीड़ा हो रही है मैं यह समझ सकती हूं| मगर तुम्हें अभी नहीं समझ में आएगा तुम बहुत छोटे हो| मुझे तुम्हें बचाने के लिए और कुछ नहीं सूझ| मेरे पास दूसरा कोई विकल्प ही नहीं था|

बच्चों का गुस्सा

ऐसा कहकर सावित्री अपने बच्चों को संभालती है और घर चली जाती है| सावित्री का बच्चा भी सावित्री से थोड़ा गुस्सा कर रहा था की मां ने मुझे इतनी चोट क्यों की?

शायद हमारे जीवन में भी ऐसा कहीं ना कहीं होता होगा |सावित्री की जगह हम भगवान को रखें, ईश्वर को रखें और बच्चे की जगह हम अपने आप को रखें तो ऐसा कहीं ना कहीं हमारे साथ होता ही है |भगवान हमारे साथ अच्छा करने के लिए थोड़ा खराब कर देते हैं तो हमें लगता है कि भगवान मेरे साथ नहीं है, भगवान सिर्फ मेरा बुरा ही चाहते हैं|

तो हम ऐसा कहकर भगवान को कोसने लगते हैं, पर हमें हमारे जीवन में जो जिससे हम बच्चे हैं जो मुश्किल से हम निकले हैं उसकी हमें देखना चाहिए कि भगवान ने काफी बड़ी मुश्किल को हमसे दूर करके छोटी चोट लगा दी|

जैसे कि हम चलते-चलते ही किसी गाड़ी के साथ टकरा गए औरहमें पर पर चोट लगी तो हम भगवान को ही गलत ठहराएंगे की भगवान मेरा क्या कसूर था? मैं तो चला जा रहा था, तो यह सामने से ही गाड़ी आई और मुझे क्यों ठोकर मार दी? ऐसा कहकर हम भगवान को भी शिकायत कर देते हैं|

पर हमें यह भी सोचना चाहिए कि जो गाड़ी से हमें ठोकर लगी है वह गाड़ी से हमारा पैर भी टूट सकता था, हमारा सर भी फट सकता था, और इतना ही नहीं हमें वह गाड़ी कुचल कर भी जा सकती थी|

भगवान ने तो थोड़ी सी चोट से ही बड़ी घटना से हमें बचा लिया| तो हमें कोई भी घटना के पीछे का जो कारण है उसको देखकर आगे की सोच रखनी चाहिए|

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