एक गाढ जंगल था। जंगल में एक शेर रहता था। शेर के तीन सेवक थे- एक बाघ, दूसरा कौवा, तीसरा लोमड़ी था।
एक बार एक उंट अपने झुंड से अलग होकर भटक रहा था। शेर के सेवक ने यह देखा। शेर ने तो ऐसा जानवर कभी देखा नहीं था तो शेर अपने सेवकों से कहता है,” यह एक नया प्राणी है उसके विषय में छानबीन करो कि वह पालतू है कि जंगली है।”
![बेचारा ऊँट (the camel story in hindi) 2024](https://hindiveryshortstory.com/wp-content/uploads/2023/12/बेचारा-ऊँट-the-camel-story-in-hindi-2024.webp)
ऊँट रस्ता भुल गया:
लोमड़ी ने कहा,” यह ऊंट है ,वह पालतू है मगर उसका मांस बहुत अच्छा होता है, उसे मार दो।”
शेर कहता है,” यह तो हमारे घर आया हुआ मेहमान है ।उसे मैं नहीं मारूंगा। मैं उसको जिंदा छोड़ देता हूं। उसको लेकर आओ ।”
तीनों सेवक ऊंट के पास जाते हैं और ऊँट को बहुत मनाकर शेर के पास लेकर आते हैं। शेर उसके विषय में पूछता है। ऊंट पहले से अंत तक सब बात कहता है कि कैसे वह अपने झुंड से अलग हो गया।
शेर ने कहा तुम्हें अपने गांव जाने की जरूरत नहीं है और यह भारी सामान लेकर जाने की भी जरूरत नहीं है। जंगल में ही तुम्हें अच्छा घास मिल सकता है और कोई डर भी नहीं रहेगा। यहां रहो और आराम से खाओ पियो ।
ऊंट ने शेर की बात मान ली। वह जंगल में घास खाने लगा और आराम से रहने लगा।
शेर की लडाई:
एक दिन शेर एक जंगली हाथी के साथ भिड़ गया। दोनों में खूब लड़ाई हुई। हाथी के जो मजबूत दांत होते हैं इस दांतों से शेर पर खूब हमला किया। शेर को तो बहुत चोट लगी और घायल हो गया।
शेर को पूरे शरीर पर दुख होने लगा। अब शेर की ताकत भी कम होने लगी थी ।शेर को एक जगह से दूसरी जगह जाने में भी तकलीफ हो रही थी। शिकार भी नहीं कर सकता था।
घायल शेर:
दिन पर दिन वह दुबला होता जा रहा था। शेर और उसके सेवक भूखे ही रह रहे थे। जहां राजा ही भूखा हो वहां प्रजा को कैसे खाना मिल सकता है ।शेर को भी यह देखकर दुख हुआ। उसने कहा जो एक निर्बल प्राणी खोज कर लाओ। मैं उसको मार सकूंगा।
लोमड़ी की मीठाश:
तीनों सेवक निर्भर प्राणी की शोध में निकल गए। जंगल के तो सभी प्राणी मोटे तगड़े थे। जिसको शेर मार सके ऐसा कोई जानवर ही नहीं था। कौवा और लोमड़ी सोचने लगते हैं कि ,”अभी क्या करें?
तब लोमड़ी रहती है हम लोग फालतू में ही परेशान हो रहे हैं ।ऊंट को मार कर उसे खाकर हम चारों का पेट भर सकता है। कौआ लोमड़ी की इस बात को मान गया और कहने लगा,” मगर शेर तो उसे नहीं मरेगा।” शेर ने तो ऊँट को जिवतदान दिया है।
लोमड़ी ने कहा ,”मैं शेर को समझाऊंगा।” तभी लोमड़ी शेर को समझने जाती है। लोमड़ी कहती है ,”महाराज हमने पूरा जंगल देख लिया। एक भी निर्बल प्राणी नहीं मिला। आप भूखे हो और ऊंट का मांस खाकर आप अपनी भूख शांत करो।”
शेर गुस्सा हो गया और कहा ,”अरे! पापी दूसरी बार ऐसा मत बोलना वरना तुझे मार डालूंगा। मैंने जिसको जिवनदान दिया है उसे मारूंगा तो मुझे पाप लगेगा। गौ-दान, भू-दान और अन्नदान से बड़ा होता है, जिवन दान।
अब लोमड़ी शेर के गुस्से से डरा नहीं और दलील करने लगा ,”आपको पाप नहीं लगेगा। आप मारो तो पाप लागे ।आप उसे नहीं मारोगे ऊंट के उपर आपके कई सारे उपकार है। वह खुद ही आपके लिए मरना चाहे तो आप उसे भोजन बना सकते हो। आप बड़े हैं, महाराज है ।आपका जीवन बहुत कीमती है आपको जिंदा रहना ही पड़ेगा।”
लोमड़ी की चालाकी:
इतनी दलील के बाद शेर ने लोमड़ी की बात मान ली। लोमड़ी वहां से चली गई और सभी सेवकों को अपनी चाल के बारे में समझा दिया। सब शेर के पास गए। शेर ने पूछा आपको कोई मिला कि नहीं।
सबसे पहले कौवा आया बोला ,”आप मुझे खा लीजिए और आपकी भूख मिटा लीजिए। आपकी जान बचाना मेरा फर्ज है।”
लोमड़ी ने कौवे की बात को काटकर कहा तेरा मांस तो कुत्ते का झूठे जैसा है,वह कैसे खाएंगे। तुमने अपनी सेवा भक्ति दिखाकर महाराज का दिल जीत लिया।
लोमड़ी ने शेर को नमस्कार किया और बोला ,”आप मुझे खालो और आपकी जान बचा लो। आप मेरे महाराज है। मुझे खाएंगे तो मेरा जीवन सफल हो जाएगा।”
तभी बाघ बिच में ही बोल पड़ता है,” तेरा हथियार तो नाखून है ,तुझे नहीं खा सकते।”
अब बाघ खुद ही आगे आ जाता है और कहता है ,”महाराज मुझे ही खा लीजिए जिससे मुझे स्वर्ग मिल जाएगा।”
ऊँट का भोलापन:
अब बेचारा ऊंट फस जाता है और सब की चालाकी नहीं समझ पाता।उसे लगा कि सभी इतना मीठा मीठा बोल रहे हैं और सब राजा को खुश कर रहे हैं ।कोई मरा तो नहीं ।
ऊंट भी अपने मन की तसल्ली के लिए कहता है महाराज मुझे खा लीजिए और अपनी जान बचा लीजिए। मेरा भी जीवन सफल हो जाएगा। मुझे भी स्वर्ग मिलेगा।”
ऊंट बदनसीब था जैसे ही यह बोला तुरंत ही शेर ने हां कहा और सभी ऊँट के ऊपर टूट पड़े। सब ने मिलकर ऊंट को मार दिया।
कहानी की सीख:
बड़े-बड़े पंडित भी निच लोगों के मन की बात नहीं समझ सकते। उसकी जाल में फंस जाते हैं। राजा के पास ऐसे नीच लोग हो तो हमे राजा के पास नहीं जाना चाहिए। वरना हमारा अहित निश्चित है हमें किसी की बातों के जाल में फंसकर हमारा अहित नहीं करना चाहिए।
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